गुलाब लाल रंग के ही नहीं बल्कि हरे (Green), नीले, काले, पीले रंग के भी होते हैं, क्या आप जानते हैं इसके पीछे की वजह? 

गुलाब लाल रंग के ही नहीं बल्कि हरे (Green), नीले, काले, पीले रंग के भी होते हैं, क्या आप जानते हैं इसके पीछे की वजह? प्राय: हम देखते आ रहे हैं कि प्रकृति में मौजूद कई तरह के पेड़ पौधे फूल पत्तियां भिन्न भिन्न प्रकार और अलग-अलग रंगों के पाए जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इतना ज्यादा परिवर्तन और अंतर आखिर इन फूलों -फलों मैं क्यों पाया जाता है, आज से कुछ दशक पहले जहां हम सभी लोग गुलाब के केवल लाल रंग की प्रजाति को ही जानते थे और यह मानते चले आ रहे थे कि केवल गुलाब लाल रंग का ही या गुलाबी रंग का ही धरती पर पाया जाता है लेकिन वर्तमान समय में आप देखते होंगे कि गुलाब की कई अनदेखी किस्में जो कि देखने में बेहद सुंदर होती हैं उनके कलर , हरे- नीले, पीले -बैंगनी कलर के भी अब मार्केट में और नर्सरी में उपलब्ध हैं आखिर इसके पीछे की वजह क्या है यह किस प्रकार उत्पन्न होते हैं।

 

फूलों में यह प्राकृतिक रंग कैसे आता है?

प्रकृति में तरह-तरह भूल पाए जाते हैं जिनमें रंगों और उनकी बनावट आकृति के आधार पर उन्हें काफी भिन्नता अंतर पाया जाता है। फूलों में पाए जाने वाले रंग का प्रमुख कारण एंथोसाइएनिन नामक केमिकल पदार्थ है जिसकी वजह से कोई भी फूल का रंग इस केमिकल की प्रतिक्रिया और पिगमेंट के अलग-अलग प्रभाव के कारण फूलों का रंग हरा नीला पीला गुलाबी बैंगनी, सफेद या फिर कई अन्य तरह का रंग इसमें उत्पन्न होता है। वर्तमान समय में नर्सरी और मार्केट में उपलब्ध गुलाबो की प्रजाति की बात करें तो इसमें हम पराया हरे रंग की गुलाब पीले रंग के गुलाब नीले रंग के गुलाब काले रंग के गुलाब और हल्के गुलाबी रंग के गुलाब देखते हैं जिनमें प्राया इन्हीं केमिकल रसायनों का इस्तेमाल करके इन्हें वैज्ञानिक तरीके से उगाया जाता है। जिसकी वजह से गुलाबों की विभिन्न नई प्रजातियां और नए रंग हमें देखने को मिलते हैं।

 

वहीं दूसरी तरफ यदि हम देखते हैं तो कई ऐसे फूल होते हैं जो देखने में बिल्कुल ही अलग और देखने में बेहद सुंदर दिखते हैं जिनमें एकदम ज्यादा चटक रंगों में पराया हमें पीला गेंदा का फूल, कनेर का फूल, चमेली का सफेद फूल, प्राया देखने को मिल जाते हैं इनमें अलग अलग तरह का रसायन एंथोसाइएनिन नामक तत्वों से रासायनिक प्रतिक्रिया करके इनके रंगों को निर्धारित करता है और यह फूल अपने चटक रंग की वजह से सभी का मन अपनी तरफ आकर्षित कर लेते हैं यही वजह है की प्रकृति में पाए जाने वाले लगभग सभी तरह के फूलों में इसी प्रक्रिया की दौरान रंगों की उत्पत्ति और उन फूलों की अलग पहचान उनके बनावट आकृति रंग रूप के आधार पर हम कर पाते हैं।

 

पत्तियों का रंग हरा होता है तो फूलों का रंग अलग अलग क्यों होता है?

 

जहां तक पौधों की बात करें पौधे जब बीज से छोटे पौधों का आकार लेने लगते हैं तो इनका रंग प्राय हर ही होता है और उनके बढ़ाने के साथ-साथ उनके तनु का आकार हल्का ब्राउन या चटक हर हो जाता है वही पेड़ों की 90% प्रजाति हरे रंग की पाई जाती है , जिसका सबसे प्रमुख कारण इन पेड़ पौधों में मौजूद क्लोरोफिल नामक एक ऐसा तत्व होता है जो कि पौधों को हरा भरा और पत्तियों को भी हरा भरा बनाए रखना है। वहीं कई पौधों का रंग हल्का ब्राउन या फिर मटमैला, होता है जिसकी प्रमुख वजह इनमें पाए जाने वाले एंथोसाइएनिन रसायन नामक तत्व की वजह से इनका रंग हमें अलग दिखाई देता है जो की एक रासायनिक प्रक्रिया करके अलग-अलग रंगों में हमें दिखाई पड़ते हैं।

 

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