नए संसद भवन में सेंगोल स्थापित किया गया, आखिर क्या है सेंगोल का इतिहास:-सेंगोल शब्द तमिल भाषा का शब्द है , जिसको तमिल शब्द से सेम्मई से लिया गया है जिसका अर्थ होता है नीतिपरायणता, सैंगोल सत्ता हस्तांतरण का प्राचीनतम प्रतीक रहा है। जब अंग्रेज देश को छोड़कर जा रहे थे तब लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से पूछा की सत्ता के हस्तांतरण के लिए किस तरह का समारोह हो, इसके बाद ही सैंगोल का सुझाव आया क्योंकि भारत में प्राचीन समय से ही सत्ता हस्तांतरण के लिए सबसे पहले चोल साम्राज्य में इस प्रतीक को एक राजा से दूसरे राजा को सत्ता सौंपने के लिए शुभ प्रतीक के रूप में भेंट किया जाता थाl 14 अगस्त 1947 की रात को अंग्रेज वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के द्वारा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री माननीय पंडित जवाहरलाल नेहरू को उन्होंने सा सम्मान इसी सैंगोल को देकर सत्ता हस्तांतरण की प्रथा परंपरा के द्वारा भारत को आजादी का शुभ प्रतीक चिन्ह भेंट किया था l
सैंगोल की बनावट और इसकी खासियत: –
सैंगोल 5 फीट लंबी छड़ी के आकार में इसको बनाया गया है जिसके ऊपरी सिरे पर नंदी को स्थापित किया गया है, इसमें प्रमुख रूप से चांदी धातु का इस्तेमाल करके इसे बनाया गया है और इसके ऊपर सोने की परत चढ़ाई गई है जोकि देखने में अद्भुत प्रतीक चिन्ह के रूप में दिखाई देती हैl
सेंगोल का निर्माण किसने किया था?
सेंगोल जो कि एक सत्ता हस्तांतरण का प्रमुख चिन्ह है जोकि चोल साम्राज्य से लेकर अब तक के इतिहास में अपना वर्चस्व स्थापित किए हुए हैं, इसका निर्माण चेन्नई के एक स्वर्णकार (वुमुदी बंगारू चेट्टी ) के द्वारा किया गया था l यदि बात करें इस प्रतीक चिन्ह की खासियत की तो इसमें 5 फीट 1 लंबी छड़ के ऊपर नंदी की मूर्ति बनाई गई है जो कि देखने में बेहद अद्भुत, सुंदर आकृति मैं बैठी हुई मुद्रा में बनाई गई है। प्रतीक चिन्ह की खास बात यह है कि इसे चांदी के धातु से पूर्णतया तैयार किया गया है और फिर इसके ऊपर सोने की परत चढ़ाई गई है जिससे कि यह देखने में बेहद आकर्षक दिखती है।
भारत की स्वतंत्रता, आजादी का प्रतीक चिन्ह है यह सैंगोल:-
परंपरा, प्रतिष्ठा, और अनुशासन से सुसज्जित है यह सैंगोल: – सैंगोल भारत के नए संसद भवन में स्पीकर की सीट के दाहिनी तरफ स्थापित किया जाएगा ,जो कि परंपरा, प्रतिष्ठा और अनुशासन का प्रमुख चिन्ह होगा। सेंगोल भारत की स्वतंत्रता का भी प्रतीक चिन्ह है जिसे भारत की आजादी के समय अंग्रेज वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा पंडित जवाहरलाल नेहरू को सत्ता हस्तांतरित करते समय इसे आजादी के उपहार प्रतीक चिन्ह के स्वरूप भेंट किया गया था।
सैंगोल का भारत में अब तक का इतिहास: –
सैंगोल शब्द का इतिहास प्रमुख रूप से अगस्त 1947 में मद्रास प्रेसीडेंसी तमिलनाडु में विशिष्ट लोगों का एक समूह ऐतिहासिक यात्रा के लिए जोरों शोरों से तैयारी कर रहा था, और यह तैयारी थी अंग्रेजों द्वारा भारत से छीनी गई सत्ता को दोबारा से वापस पाने की। दशकों से चले आ रहे लंबे संभव संघर्ष के बाद भारत पूर्ण रूप से अपनी स्वाधीनता और स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ रहा था। भारत अंग्रेजों द्वारा भारत पर सैकड़ों वर्षो की गुलामी की जंजीरों से अब पूर्णतया आजाद हो गया था। एक शासक से दूसरे शासक को सत्ता हस्तांतरित करने की प्रक्रिया पूर्ण रूप से अब अपने अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रही थीl
भारत अपनी स्वतंत्रता के समीप था ब्रिटिश शासन के समापन और भारत के नए स्वतंत्रता के लिए लाखों लोग अपनी कुर्बानी दे चुके थे। काफी लंबे अरसे के बाद जब अंग्रेजों को यह एहसास हुआ कि अब वह भारत पर किसी भी प्रकार से अपनी प्रभुसत्ता स्थापित नहीं कर सकते तो ,उन्होंने भारत को स्वतंत्र करने के लिए भारतीय रीति-रिवाज और सांस्कृतिक परंपराओं के आधार पर अंग्रेजों द्वारा हड़पी गई सत्ता को भारत को दोबारा से सौंपने के लिए विवश होना पड़ा।
अब अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन को एक महत्वपूर्ण कार्य करना था कि वह भारतीयों द्वारा चुने गए सत्ता को दोबारा से वापस लौटाने का कार्य करें,लेकिन लॉर्ड माउंटबेटन के सामने एक प्रश्न था कि किस प्रकार वह भारत की सत्ता को दोबारा से भारत को वापस करेंगे,उनके मन में यह भी प्रश्न था कि क्या सिर्फ हाथ मिलाकर भारत को सत्ता वापस कर दी जाए या फिर इसके लिए कोई खास सांस्कृतिक ऐतिहासिक परंपरा का समावेश किया जाए। इसके लिए किस प्रकार की खास रस्म अपनाई जाए जिससे कि भारत के लोगों की संस्कृति परंपरा का वर्चस्व बना रहे। उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू जो कि भारत के पहले प्रधानमंत्री थे उनके सामने अपना प्रस्ताव रखा की स्वराज को किस प्रकार से वापस किया जाए? इस गौरवशाली क्षण के समय कौन सी रस्म अपनाई जाए। यह एक उचित सवाल था, जिसके बारे में पंडित जवाहरलाल नेहरू को भी गहनता से विचार करना था और इसके जवाब के लिए वह पहुंच गए स्वतंत्रता सेनानी श्री गोपाला जी आचार्य के सामने रखा, श्री गोपाल आचार्य जी को राजा जी के नाम से भी जाना जाता था l
वह तमिलनाडु से थे। पंडित जवाहरलाल नेहरु श्री गोपाल जी आचार्य को उनकी विद्वता, कर्तव्यनिष्ठा संस्कृति के प्रमुख विद्वान होने के नाते उनको बेहद सम्मान देते थे। श्री गोपाला जी आचार्य जी ने इस पर गंभीरता से सोचते हुए उन्होंने भारत की गौरवमई इतिहास को खोजना चालू कर दिया, भारत में चोला साम्राज्य जो कि सबसे पुराना साम्राज्य माना जाता है और यह इस साम्राज्य दीर्घकालीन साम्राज्य तक चलने वाले साम्राज्य में से एक थाl एक चोला साम्राज्य दूसरे चोला साम्राज्य को सत्ता हस्तांतरित करने के लिए जो रस्म निभाई जाती थी, उसी परंपरा को ध्यान में रखते हुए उसका हस्तांतरण नीति परायणता, के प्रतीक अर्थात सैंगोल सौंपकर कर किया जाता था। श्री गोपाल जी आचार्य राजा जी ने इसी परंपरा से संस्कृत रीति रिवाज से इसे करने की सलाह पंडित जवाहरलाल नेहरू को दी जिसे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने स्वीकार कर लिया, और इसी को ध्यान में रखते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तमिलनाडु के प्रमुख धार्मिक मठ या आश्रम जिसे तिर्वदुथुर्रऐ आदिनाम मठ से संपर्क किया, जिसे पांच सदियों पहले स्थापित किया गया था और यह चोल साम्राज्य में,स्थित था l
इसी मठ में विधि-विधान और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के अनुसार इस सत्ता हस्तांतरण के प्रमुख चिन्ह सेंगोल को प्रतीक चिन्ह के रूप में स्वीकार किया। और फिर अंग्रेज वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा इसी सैंगोल को पंडित जवाहरलाल नेहरू के हाथों में सा सम्मान सौंपकर भारतीय प्रथा परंपरा, संस्कृति के नए गौरवमई इतिहास को स्वतंत्र रूप प्रदान किया। अब सत्ता पूर्ण रूप से भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के हाथों में आ गई थी और भारत एक बार फिर से स्वतंत्र राष्ट्र बन चुका था।
322 से 150 ईसा पूर्व मौर्य साम्राज्य में सेंगोल का हुआ था इस्तेमाल:
सेंगोल सत्ता हस्तांतरण का प्रमुख चिन्ह भारत की प्राचीन सभ्यता संस्कृति में तब से था जब भारत एक अखंड राष्ट्र हुआ करता था यदि बात करें आज से 322 से 150 ईसा पूर्व की तो मौर्य साम्राज्य काल में सत्ता हस्तांतरण का प्रमुख चिन्ह सैंगोल(Sengol) हुआ करता था और इसे एक राजा द्वारा दूसरे राजा को सत्ता हस्तांतरित करने में इस विशिष्ट चिन्ह को सा सम्मान भेंट किया जाता था।
320 ई.पू० से 550 ई.पू० में चंद्रगुप्त साम्राज्य में इसका प्रयोग किया गया:-
आज से 320 ईसा पूर्व से 550 ईसा पूर्व में महान सम्राट शासक चंद्रगुप्त के साम्राज्य में भी सैंगोल को सत्ता हस्तांतरण के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला सबसे प्रमुख पवित्र चिन्ह माना जाता था। चंद्रगुप्त मौर्य साम्राज्य का सबसे शक्तिशाली राजा था जिस का इतिहास आज भी लोगों को एक प्रेरणा देता है, कहा जाता है कि चंद्र गुप्त साम्राज्य में भी सत्ता हस्तांतरण के लिए स्वयं चंद्रगुप्त ने इस सैंगोल को सत्ता हस्तांतरण के समय प्रमुख चिन्ह के रूप में स्वीकार किया था।
907 ईo पू ० से 1310 ई० में चोल साम्राज्य में भी सैंगोल को महत्व दी गईl
सैंगोल का प्रमुख इतिहास प्रमुख रूप से 907 ईo पू ० से 1310 ईसा पूर्व में चोल साम्राज्य के समय से यह सत्ता हस्तांतरण के लिए प्रमुख पद चिन्ह के रूप में दिया जाने वाला सबसे प्रमुख पवित्र चिन्ह हुआ करता था। चोल साम्राज्य के राजा अपने कार्यकाल समापन और सत्ता हस्तांतरित करने के लिए प्रमुख रूप से इसी सैंगोल को पद प्रतिष्ठा सम्मान के तौर पर दूसरे होने वाले राजा को इसे भेंट करते थे।
मुगल साम्राज्य में भी सैंगोल का इस्तेमाल हुआ:-
सैंगोल का जिक्र मुगल साम्राज्य में भी प्रमुख रूप से आता है जिसमें मुगल शासकों द्वारा अपनी सत्ता हस्तांतरण के लिए इस प्रमुख पद चिन्ह को दूसरे शासक को राज सत्ता हस्तांतरित करने के लिए, भेंट स्वरूप प्रदान किया जाता था।
भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा सेंगोल को अधिकार का प्रतीक माना:-
भारत में जब अगस्त 1608 में कैप्टन विलियम हॉकिंस ने भारत के सूरत बंदरगाह पर अपने जहाज का लंगर डालकर ईस्ट इंडिया कंपनी का एलान किया उसके बाद तो भारत में राजनीति और कूटनीति के द्वारा अंग्रेजों द्वारा भारत के राजाओं को आपस में ही लड़ा कर सत्ता हस्तांतरित करने और सत्ता को अपने हाथों में प्रमुख रूप से हथियाने के लिए इस तरह की अंग्रेजों द्वारा चाल चली गई और तब भी अंग्रेजों ने इसी सैंगोल को अधिकार स्वरूप मानकर इसको अपने हाथों में लेकर भारत पर सत्ता अधिकार जमाने का डंका बजा दिया था।
14 अगस्त 1947 को सत्ता अंग्रेजों द्वारा सत्ता का ट्रांसफर करने का प्रतीक बना:-
भारत 100 साल से अधिक समय से अंग्रेजों के गुलामी की जंजीरों में जकड़ा रहा और इस तरह से भारत में कई ऐसे, महान क्रांतिकारी हुए जिन्होंने अंग्रेजों की बिगुल बजा दी l जिसमें प्रमुख रुप से यदि बात करें तो भारत के वीर सावरकर, चंद्रशेखर आजाद, शहीद भगत सिंह, महात्मा गांधी जैसे प्रमुख लोगों का जिक्र आज भी भारत की आजादी मैं प्रमुख रूप से रहा, कई ऐसे बड़े क्रांतिकारी आंदोलन हुए जिससे अंग्रेजों को आखिर बाद में भारत को छोड़ने के लिए विवश होना ही पड़ा तब , अंग्रेज शासक लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा 14 अगस्त 1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के हाथों में प्रमुख रूप से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक चिन्ह सैंगोल को देकर भारत को पराधीनता की बेड़ियों से मुक्त करना ही पड़ा ,और इस तरह से भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित हुआ और भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु बने, जिन्होंने भारत की संप्रभुता, अखंडता, को स्थापित किया।