आखिर किस तरह बनता है सिंदूर? आज देख लो !आंखों पर यकीन नहीं होगा: –

आखिर किस तरह बनता है सिंदूर? आज देख लो !आंखों पर यकीन नहीं होगा: –सिंदूर जो कि भारतीय सभ्यता संस्कृति में सदियों से स्त्रियों के लिए, शुभ का प्रतीक माना जाता है, और भारतीय सभ्यता संस्कृति में सिंदूर का टीका, देवी देवताओं से लेकर कई महत्वपूर्ण अनुष्ठानों, धार्मिक कार्यों में इसको शुभ प्रतीक के रूप में , लगाया जाने वाला सबसे उत्तम पदार्थों में से एक माना जाता है। सिंदूर शुभ, विजय और उल्लास प्रसन्नता का भी सूचक माना जाता है। भारतीय सभ्यता संस्कृति में प्राचीन सभ्यता से लेकर आज तक सिंदूर का उपयोग प्रमुख रूप से धार्मिक, के साथ-साथ देवी देवताओं के प्रमुख अनुष्ठानों में इसको शुभता के सूचक के रूप में लगाया जाता है।

सिंदूर में कई प्रकार के अलौकिक गुण भी विद्यमान होते हैं, इस में पाए जाने वाले कई प्रकार के शुभ योगिक तत्व, और कई प्रकार के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने की इसमें शक्ति विद्यमान होती है जिसके चलते सदियों से आज तक स्कोर भारत में सबसे उच्च श्रेणी का पदार्थ माना जाता है। भारत में शुभ विवाह के समय स्त्रियों द्वारा मांग में लगाए जाने वाला सिंदूर प्राचीन सभ्यता और भारतीय संस्कृति की एक अनोखी झलक दिखाता है जो कि भारत की एक अनूठी परंपरा सदियों से रही है और आज भी यह शुभ सिंदूर भारतीय सभ्यता संस्कृति के नए दौर में भी सबसे शुभ माना जाता है।

 

सिंदूर किस तरह बनता है? और इसमें कौन-कौन से मुख्य अलौकिक गुण विद्यमान होते हैं, यह प्रश्न शायद ही कभी जेहन में आया होगा लेकिन आपको जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि सिंदूर बनाने से लेकर इस में विद्यमान कई प्रकार के मुख्य गुणों की वजह से यह भारतीय सभ्यता संस्कृति में अपनी अनोखी छाप आज भी छोड़े हुए हैं, जिसका जितना सरल नाम हमारे सामने उभर कर आता है उसको बनाने से लेकर, उपयोग में लाने तक के प्रोसेस में यह उतना ही जटिल और कठिन ता से प्राप्त होने वाला पदार्थ है जिसका पूरा प्रोसेस आज आप जानेंगे कि आखिर सिंदूर बनता कैसे है और यह किस प्रकार से मार्केट से लेकर घरों तक और शुभ कार्यों में उपयोग होने में कैसे उपयोग में आता है।

 

सबसे पहले सिंदूर के पेड़ को उगाया जाता है: –

सिंदूर का पेड़ भी होता है ऐसा पहली बार जानकर आप चौक जायेंगे लेकिन यह 100 फ़ीसदी सत्य है कि पहले सिंदूर के पेड़ को जोकि इसके बीज लाल रिश्तेदार फलों के बीच में मौजूद होते हैं उनको मिट्टी में एक उचित नमी में लगाया जाता है और कुछ समय बाद यह बीज उत्पन्न होकर धीरे-धीरे बढ़ने लगता है,

 

जोकि 4 से 5 महीने के बाद सिंदूर का पेड़ लगभग 3 से 4 फुट की ऊंचाई तक बढ़ जाता है बस जरूरत यह होती है इसमें समय समय पर उचित मात्रा में पानी और खाद देनी होती है। धीरे-धीरे यह सिंदूर का पौधा बड़ा आकार लेने लगता है और लगभग 2 सालों के बाद यह 10 फीट ऊंचाई तक बढ़ जाता है और इसमें पहले की अपेक्षा ज्यादा मात्रा में ज्यादा घनी टहनियां और पत्तियां उत्पन्न हो जाती हैं और आगे आने वाले 3 से 4 सालों में इस सिंदूर के पौधे पर पहले बड़ी मात्रा में फूल लगने लगते हैं

 

और इसके बाद इस पर छोटे-छोटे सिंदूर के फल उत्पन्न होने लगते हैं जो कि कच्ची अवस्था में हरे रंग के होते हैं, लेकिन जैसे-जैसे यह फल पकने लगते हैं इनका रंग लाल होने लगता है और इस प्रकार से यह सिंदूर का पेड़ लाल रंग के रेशेदार फल उत्पन्न करना शुरू कर देता है।

सिंदूर बनाने की प्रक्रिया: –

 

 यह लाल रंग के पके हुए रेशेदार फल ही पूर्णतया सिंदूर के फल होते हैं जिन्हें तोड़कर, इनको पहले अच्छे से सुखा लिया जाता है , पूरी तरह से सूखने के बाद यह सिंदूर के फल हल्के ब्राउन कलर के ऊपर से दिखने लगते हैं वही उनके अंदर जो बीज पाया जाता है वह पूर्णतया पकने के बाद गहरे लाल कलर का बीज होता है जिसे अच्छी तरह से पीसकर इसे सिंदूर का रूप दे दिया जाता है। और इतना प्रोसेस होने के बाद यह सिंदूर पैकिंग और डिब्बों में पैक हो कर आपके घरों तक पहुंच जाता है। 

 

मार्केट में लाल रंग के अतिरिक्त कई अन्य कलर Colors  जैसे हल्के पीले रंग, सिंदूरी रंग, संतरी रंग, गेरुई रंग के भी सिंदूर, भी मिलते हैं आखिर यह सिंदूर कैसे बनाए जाते हैं आओ जाने:-

 

वहीं कई लोगों के मन में यह प्रश्न आता होगा कि आखिर सिंदूर का रंग तो लाल होता है लेकिन सिंदूर पीले रंग का भी आता है और हल्के नारंगी रंग का भी आता है और गेरुआ रंग का भी आता है तो इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह होती है कि इस तरह के सिंदूर में इसी मुख्य सिंदूर में कुछ अन्य वैकल्पिक रंगों को ऐड करके इन्हें दूसरे रंग के सिंदूर के रूप में बना लिया जाता है और इन्हें मार्केट और आपके घरों तक पहुंचाया जाता है जिससे कि यह सिंदूर धार्मिक अनुष्ठानों में और स्त्रियों द्वारा इसे उपयोग में लाया जाता है।

 

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